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अकिंचन व्यक्ति कौन है | Indigent Person in Hindi
“आदेश 33 निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद संस्थित किये जाने के बारे में उपबन्ध करता है। जब भी कोई व्यक्ति सिविल न्यायालय में वाद दायर करना चाहता है वहाँ उसे उचित फीस देनी होगी किन्तु आदेश 33 इसका एक अपवाद है।
जो व्यक्ति कोर्ट फीस देने की सामर्थ्य नहीं रखता, और इस तरह न्याय से वंचित हो जायेगा। उसके उद्देश्यों (न्याय के) की प्राप्त करने के लिए आदेश 33 का उपबन्ध किया गया है।” निम्नलिखित उपबन्धों के अधीन रहते हुये कोई भी वाद (निर्धन व्यक्तियों) द्वारा संस्थित किया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण (1) कोई व्यक्ति निर्धन तब है |
(क) जब उसके पास इतना पर्याप्त साधन नहीं है कि वह ऐसे बाद में बाद पत्र के लिए विहित फीस दे सके।
(ख) जहाँ कोई फीस विहित नहीं है वहाँ उसके पास 1000′ रु० से अधिक तक की सम्पत्ति नहीं है। उपरोक्त दोनों अवस्थाओं में डिक्री के निष्पादन में कुर्सी से छूट प्राप्त सम्पत्ति और वाद की विषय वस्तु ऐसे व्यक्ति की विषय वस्तु में सम्मिलित नहीं होगी।
स्पष्टीकरण 2- आवेदक निर्धन है कि नहीं ऐसी सम्पत्ति को ध्यान में रखा जाएगा जो उसने आवेदन करने के पश्चात् और आवेदन के विनिश्चय के पूर्व अर्जित किया है।
स्पष्टीकरण 3- जहाँ वादी प्रतिनिधि की हैसियत से वाद लाता है वहाँ इस प्रश्न का अवधारणा की वह निर्धन व्यक्ति है उसके साधनों के प्रति निर्देश से किया जायेगा जो उसके पास है।
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आवेदन पत्र का अस्वीकार किया जाना
आदेश 33 (5) के अनुसार न्यायालय यदि उचित समझता है तो आवेदन पत्र को निम्न आधारों पर अस्वीकार कर सकता है |
1. विहित ढंग से आवेदन न बनाये जाने और पेश न किये जाने पर या
2. आवेदक के अकिंचन न होने पर या
3. यदि आवेदक पेश करने के ठीक दो माह पहले कपटपूर्वक अपनी किसी सम्पत्ति का व्ययन इसलिए कर दिया है कि वह ऐसा अकिंचन वाद लाने में समर्थ हो सके|
4. यदि उसके अभिकथनों में वाद हेतु दर्शित नहीं किया गया है, या
5. यदि उसने प्रस्तावित वाद की विषय वस्तु के सन्दर्भ में ऐसा कोई करार किया है, जिसके अधीन किसी अन्य व्यक्ति ने ऐसी विषय वस्तु में हित प्राप्त कर लिया हो, या
6. जहाँ आवेदक के अभिकथनों विधि के अधीन मर्यादा बाधित होगा, या में यह दर्शित होता है कि वाद तत्समय प्रवृत्त |
7. जहाँ किसी व्यक्ति ने उसके साथ उसकी आर्थिक मदद देने का कोई करार किया हो। आवेदन पत्र स्वीकार किये जाने पर प्रक्रिया-न्यायालय द्वारा नियम (5) के अन्तर्गत दिये गये आधारों पर आवेदन पत्र अस्वीकार नहीं किया जाता है तो वह इस सम्बन्ध में आगे कार्यवाही करेगा।
आदेश 33, नियम 6 से 8 के अनुसार
(i) न्यायालय आवेदनकर्ता की अकिंचनता के विरुद्ध सुनने एवं अभिलिखित करने के लिए सरकारी अधिवक्ता एवं विपक्षी अधिवक्ता को सूचना देगा एवं दोनों पक्षकारों को सुनने के पश्चात् निर्धनता का अवधारण करेगा।
(ii) यदि निर्धन के रूप में वाद लाने के लिए किया गया आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है तो उसका वादपत्र बिना न्यायालय शुल्क एवं आदेशिका शुल्क के ग्रहण कर लिया जायेगा।
(iii) लेकिन यदि उसका आवेदन पत्र अस्वीकार कर दिया जाता है तो न्यायालय उसे न्यायालय शुल्क का भुगतान करने और साधारण रीति से वाद संस्थित करने का आदेश दे सकेगा।
अकिंचन वाद दायर करने की प्रक्रिया
आदेश 33 के नियम 2 और 3 में उपबन्धित प्रक्रिया के अनुसार अकिंचन वाद दायर करने की अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदक को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में आवेदन पेश करना चाहिये।
आवेदन में ऐसे सभी विवरण कथित किये जायेंगे जो वादों के वादपत्रों के सम्बन्ध में अपेक्षित होते हैं, और उनके साथ संलग्न की जायेगी, और उसको उसी प्रकार से हस्ताक्षरित और सत्यापित किया जायेगा जैसा कि अभिवचनों के सम्बन्ध में विहित किया गया है। प्रतिनिधि यदि आवेदक न्यायालय में हाजिर होने से मुक्त है तो आवेदन उसके किसी प्राधिकृत के द्वारा पेश किया जा सकता है |
यदि एक से अधिक वादीगण है तो इतना ही पर्याप्त है कि उनमें से कोई एक व्यक्ति आवेदन पेश कर दे। आगे नियम 4 के अनुसार यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह आवेदक को या उसके प्रतिनिधि को आवेदक के दावों के गुणों और सम्पत्ति के सम्बन्ध में परीक्षा कर सकेगा। यदि आवेदन उसके प्रतिनिधि के द्वारा पेश किया गया है तो न्यायालय कमीशन के द्वारा आवेदक को परीक्षा किये जाने का आदेश दे सकेगा।
न्याय शुल्क की वसूली-किसी भी वाद में न्याय शुल्क आवश्यक रूप में देय होता है अकिंचन से भी निम्नलिखित परिस्थितियों में वाद शुल्क लिया जा सकता है |
1. जबकि वह वादी के रूप में बाद में सफल हो जाता है।
2. यदि वह वाद में असफल रहता है।
3. यदि वह निर्धन नहीं रहता।
4. यदि वह वाद वापस ले लेता है।
5. यदि वाद उसकी अनुपस्थिति के कारण निरस्त हो जाता है।
6. यदि वाद वादी की मृत्यु के कारण उपशमन हो जाता है तो उसकी सम्पदा से न्याय शुल्क लिया जाएगा।
अकिंचन वाद लाने की मंजूरी न दिये जाने के कारण
यदि अकिंचन याद दायर करने की अनुमति के लिए पेश किया गया आवेदन अस्वीकृत कर दिया जाता है तो आवेदक पुनः वाद करने के अपने ऐसे अधिकार के सम्बन्ध में उस प्रकार का आवेदन याद में नहीं कर सकेगा।
आदेश 33 नियम 17 किसी ऐसे प्रतिवादी को जो मुजरा या प्रतिदायों का अभिवचन करने की वांक्षा करता है। निर्धन व्यक्ति के रूप में ऐसा दावा अभिकथित करने की अनुजा दी जा सकेगी और इस आदेश में उपबन्धित नियम जहाँ तक हो सके उसे इस प्रकार लागू होंगे मानो वह वादी दो और उसका कथन लिखित वाद पत्र हो ।
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निर्धन व्यक्तियों के लिए मुफ्त विधिक सहायता कराने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति (आदेश 33 नियम 18) –
(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उन व्यक्तियों के लिए जिन्हें निर्धन व्यक्तियों के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा दी गयी है मुफ्त विधिक सेवाओं की व्यवस्था करने के लिए ऐसे अनुपूरक उपबन्ध बना सकेगी जो वह ठीक समझे।
(2) ऐसी विधिक सेवाएँ उनकी प्रकृति शर्तों के अनुसार अभिकरण के माध्यम से प्रदान की जायेगी। आदेश 33 के नियम 18 उपनियम (1) के अन्तर्गत केन्द्रीय या राज्य सरकार लोक अनुपूरक अनुबन्ध बनाये उसको कार्यान्वित करने हेतु उच्च न्यायालय राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से नियम बना सकेगा।
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