
Contents
प्रतिनिधि वाद क्या है
प्रतिनिधि वाद क्या है – प्रतिनिधि वाद से तात्पर्य एक ऐसे बाद से है जो एक या एक से अधिक व्यक्ति अपने एवं दूसरे के लाभ के लिये, जिसमें उनका एक हित है दायर कर सकते हैं या उसके विरुद्ध दायर किया जा सकता है।
आदेश 1 नियम 8 के अनुसार
जहाँ एक ही बाद में एक ही हित रखने वाले बहुत से व्यक्ति हैं वहाँ उन हितबद्ध सभी व्यक्तियों की ओर से या उनके लाभ के लिए न्यायालय की अनुमति से एक या अधिक व्यक्ति वाद ला सकते हैं या उनके विरुद्ध वाद लाया जा सकता है या प्रतिरक्षा कर सकते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रतिनिधि वाद वह वाद है जिस बाद में एक ही हित रखने वाले बहुत से व्यक्तियों की ओर से एक या अधिक व्यक्ति अपने और दूसरे के लाभ के लिए न्यायालय की अनुमति से वाद संस्थित कर सकते हैं या उनके विरुद्ध वाद संस्थित किया जा सकता है या प्रतिरक्षा कर सकते हैं।
यह नियम सुविधा के सिद्धान्त पर आधारित है यह प्रतिनिधि वाद का अधिकार प्रदान नहीं करता अपितु प्रतिनिधि वाद प्रस्तुत किए जाने की प्रक्रिया को बताता है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 का उद्देश्य मुकदमे द्वारा प्रभावित होने वाले सम्भाव्य व्यक्तियों को नोटिस देना होता है। (वी० पुरुषोत्तम राव बनाम यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया (2001 SC)
निशावर सिंह बनाम लोकल गुरुद्वारा कमेटी मंजी साहब (1986 पंजाब एण्ड हरियाणा) के मामले में एक समिति ने प्रस्ताव पास करके ‘अ’ को समिति की ओर से वाद संस्थित करने के लिए अधिकृत किया ‘अ’ ने समिति की ओर से वाद संस्थित किया। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ‘अ’ को प्रतिनिधिवाद संस्थित करने का अधिकार है।
सरस्वती बाई बनाम दुर्गा सहाय और अन्य (1982 मध्य प्रदेश) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है कि आदेश 1 नियम 8 एक व्यक्ति को उन सभी व्यक्तियों की ओर से जिनका वाद हित एक है, प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्रदान करता है।
परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्तिगत रूप से वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता है। कोई व्यक्ति अकेले वाद प्रस्तुत कर सकता है। यदि उसका वाद अन्य व्यक्तियों के संयोजन के बिना ही चल सकता है।
उमा गुप्ता बनाम महेश कुमार प्रहलाद (2005 कलकत्ता) के मामले में सी०आई० सी० सोसाइटी के विरुद्ध सामान्य श्रेणी के प्रबन्ध एवं प्रशासन के लिए तथा सुविधाएँ उपलब्ध कराने की दृष्टि से योजना बनाने के लिए सोसाइटी के सभी सदस्यों की ओर से परिसर के स्वामियों में कब्जा धारकों द्वारा वाद लाया गया। भिन्न फ्लैटों के स्वामियों, कब्जाधारकों एवं आवेदकों द्वारा इस आधार पर प्रतिवादी बनाए जाने के लिए आवेदन किया।
उनका तर्क था कि उनके वाद की विषय वस्तु में व्यापक हित है। आवेदन निरस्त करते हुए यह अभिनिर्धारित किया गया कि आवेदकों को प्रतिवादी के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके द्वारा समय से न आने का कोई कारण नहीं बताया गया और न ही यह बताया गया कि वाद का संचालन समुचित लोगों के पास नहीं है।
इसे भी पढ़ें – अन्तराभिवाची वाद क्या है? | सुनवाई की प्रक्रिया | Interpleader Suit in Hindi
प्रतिनिधि वाद के उद्देश्य
प्रतिनिधि वाद के उद्देश्य यह नियम सुविधा के सिद्धान्त पर आधारित है। ऐसे बाद के माध्यम से एक ऐसे प्रश्न पर विनिश्चय प्राप्त किया जाता है जिसमें व्यक्तियों का एक बड़ा वर्ग हितबद्ध है और जिसमें संहिता में बताई गई सामान्य प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। दूसरे शब्दों में हर उस व्यक्ति को जिसका हित प्रभावित होता है पृथक वाद लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती या सभी को वाद का पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस उपबन्ध का भी उद्देश्य धारा 11, 47 की भाँति वादों की बहुलता को रोकना है।
प्रतिनिधि वाद की आवश्यक शर्ते
प्रतिनिधि वाद के संधारण के लिये निम्न शर्तों का पूरा होना आवश्यक
(1) पक्षकारों की संख्या बहुत अधिक हो।
(2) उन सभी का वाद में एक ही हित हो|
(3) न्यायालय की अनुमति प्राप्त कर ली गयी हो,
(4) उन सभी पक्षकारों जिनका कि प्रतिनिधित्व किया गया है, सूचना दे दी गयी हो।
1. पक्षकारों का अधिक संख्या में होना- इस नियम की प्रयोज्यता के लिए यह आवश्यक है कि बाद में पक्षकारों की संख्या अधिक हो।
यह जरूरी नहीं है कि पक्षकार लाखों या हजारों की संख्या में हों। इस नियम के अन्तर्गत गाँव की सम्पत्ति के लिए गाँववासियों की तरफ से जाति, धर्म या समुदाय की ओर से प्रतिनिधि वाद लाया जा सकता है।
2. एक ही हित का होना – यह आवश्यक है कि जिन पक्षकारों की ओर से प्रतिनिधि बाद संस्थित किया जाना है, उन सभी व्यक्तियों का वाद में एक ही हित या सामान्य हित हो। वहाँ एक ही हित का अर्थ यह है कि यदि किसी समूह की ओर से वाद संस्थित किया जा रहा है तो समूह के सभी सदस्यों का सामान्य हित होना चाहिए।
3. न्यायालय की अनुमति- यह जरूरी है कि प्रतिनिधि वाद संस्थित करने के लिए न्यायालय ने अनुमान प्रदान कर दी हो न्यायालय की अनुमति वाद संस्थित करने के पहले या वाद के दौरान या अपील के स्तर पर ली जा सकती है।
इसे भी पढ़ें – अकिंचन व्यक्ति कौन है | परिभाषा, शर्तें, प्रक्रिया, कारण | Indigent Person in Hindi
भूपेन्द्र सिंह बनाम म्यूनिसिपल कौंसिल अम्बिकापुर (2002, छत्तीसगढ़) के वाद में लोक न्यूसेन्स के विरुद्ध व्यादेश के लिए वाद फाइल किया गया था। न्यायालय के प्रतिनिधिक वाद मामले से इन्कार कर दिया था इसीलिए प्रतिवादी के विरुद्ध नुकसानी के वाद का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता।
4. सभी सम्बन्धित पक्षकारों को सूचना प्रतिनिधि वाद के नियम के लागू होने के लिए अन्तिम शर्त है कि जिन पक्षकारों का वाद में प्रतिनिधित्व किया जाना है उन सभी सम्बन्धित पक्षकारों को वाद की सूचना न्यायालय द्वारा दे दी गयी हो ।
न्यायालय ऐसी सूचना सभी हितबद्ध व्यक्तियों को वैयक्तिक तामील द्वारा या जहाँ व्यक्तियों की संख्या अधिक है या अन्य किसी कारण से ऐसी तामील सम्भव नहीं है वहाँ सार्वजनिक विज्ञापन द्वारा वादी के खर्च पर देगा।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि प्रतिनिधि वाद के लिए यह तो आवश्यक है कि सभी पक्षकारों का हित समान या एक हो परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सभी का वाद हेतु एक जैसा हो। इसी प्रकार आदेश एक नियम 8 प्रतिनिधि वाद के लिए सदस्यों की संख्या पर कोई सीमा नहीं लगाता।
उपर्युक्त नियम का मुख्य उद्देश्य ऐसे वाद की सुनवाई में जहाँ पक्षकारों की संख्या अत्यधिक हो एवं उन सबका एक समान हित है असुविधा एवं विलम्ब से दूर करना है। प्रतिनिधि वाद में निर्णय सभी हित बद्ध पक्षकारों पर प्राङ्गन्याय के रूप में लागू होती है।
Related Links –
- प्रतिनिधि वाद क्या है | उद्देश्य और शर्ते | Representative suits in Hindi
- अन्तराभिवाची वाद क्या है? | सुनवाई की प्रक्रिया | Interpleader Suit in Hindi
- अकिंचन व्यक्ति कौन है | परिभाषा, शर्तें, प्रक्रिया, कारण | Indigent Person in Hindi
- लोक अपदूषण का क्या अर्थ है | कार्यवाही | उपाय | Meaning of Public Nuisance in Hindi
- धारा 86 के अनुसार विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद | The Suit against Foreign States
- दीवानी प्रकृति का वाद क्या है? |सिद्धान्त | Suit of Civil Nature in Hindi
- लोक पर प्रभाव डालने वाले कार्यों के विरुद्ध वाद कब दायर किया जा सकता है | उद्देश्य
- आदेशों की अपील पर टिप्पणी | Comment on The Appeal of The Orders
- द्वितीय अपील कब होती है? | द्वितीय अपील के प्रावधानों का वर्णन | Second Appeal
- मूल डिक्री की अपील पर टिप्पणी। The Appeal of The Original Decree in Hindi
- अपील क्या है? | अपील के प्रकार एवं प्रारूप का वर्णन | What is an appeal in Hindi
- सिविल प्रकृति का वाद किसे कहते हैं | विषयवस्तु,| Suit of Civil Nature in Hindi
- सूचना का उद्देश्य | सूचना का विषयवस्तु, अभित्यजन, टिप्पणी | Purpose of Notice in Hindi
Disclaimer
Disclaimer: www.efullform.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us; itsabhi356@gmail.com