
साइबर अपराध क्या है? उसकी प्रकृति का वर्णन कीजिये। Definition of Cyber Crime
साइबर अपराध क्या है- भारत में विगत सदी के आठवें दशक में हुए सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया के विकास के परिणामस्वरूप कम्प्यूटर जनित अपरार्थों का एक नया वर्ग अस्तित्व में आया है। जिसे साइबर अपराध के नाम से जाना जाता है। विश्व स्तर पर इन अपराधों की निरंतर बढ़ती हुई संख्या के कारण अपराध-विधि प्रवर्तन संस्थाओं के समक्ष यह एक नई चुनौती के रूप में उभर कर साने आई है।
साइवर अपराधों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपराधी की घटनास्थल पर उपस्थित के बिना किसी भी स्थान पर कारित हो सकते हैं तथा अपराधी व उसके अपराध का शिकार हुआ पीड़ित व्यक्ति एक-दूसरे से पूर्णतः अनजान रहते हैं। इन अपराधों की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसे कारित करने वाला अपराधी स्वयं अदृश्य रहते हुए कम्प्यूटर तकनीक के माध्यम से लक्षित व्यक्ति (Victim-Target) को क्षति कारित करता है, अतः उसकेन पकड़े जाने की संभावना प्रायः नहीं के बराबर रहती है।
विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों में कम्प्यूटर से जनित अनेक प्रकार की अवैध एवं आपराधिक गतिविधियाँ सम्मिलित रहती हैं, जिनमें संचार सेवाओं की चोरी, कपट, औद्योगिक जासूसी (Industrial espionage), अवांछित, अश्लील तथा लैंगिक का प्रसारण, मनी लाउंड्रिग अर्थात काले धन को चालाकी से सफेद धन में परिवर्तित करना, करो की चोरी ( Tax Evasion), ई-मेल में अवैध हेरा-फेरी, या अवैध हस्तक्षेप, गोपनीय सूचना का दुरुपयोग, आतंकवादी संसूचनाओं का आदान-प्रदान या षड्यन्त्र आदि प्रमुख हैं |
साइबर अपराध की परिभाषा (Definition of Cyber Crime)
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अन्तर्गत साइबर अपराध को परिभाषित नहीं किया गया है। अनेक विद्वानों का मत है कि इसकी परिभाषा अन्य परंपरागत अपराधों की परिभाषा से मूलतः भिन्न नहीं है क्योंकि अन्य अपराधों की भाँति साइबर अपराध में भी कोई ऐसा कार्य करना या कार्यलोप जिससे विधि का उल्लंघन होता है।
राज्य द्वारा दंडनीय होगा। फिर भी स्वतंत्र परिभाषा की दृष्टि से साइवर अपराध को ऐसा आपराधिक कृत्य कहा जा सकता है जिसमें कम्प्यूटर को या तो माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है या उसे अपराध कारित करने का साधन (tool) या लक्ष्य (target) के रूप में निशाना बनाया जाता है।
साइबर अपराध एक ऐसी अवैध गतिविधि है जिसमें कम्प्यूटर को एक माध्यम के रूप में या निशाने (Target) के रूप में या अपराध करने के माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। दूसरे शब्दों में साइबर अपराध एक ऐसा अवैधानिक कृत्य है जिसमें कम्प्यूटर सावन के रूप में या साध्य (समय) के रूप में प्रयुक्त होता है। इसमें अनेक प्रकार की आपराधिक गतिविधियों शामिल रहती है जो कम्प्यूटर डाटा या सिस्टम्स की गोपनीयता या विश्वसनीयता पर विपरीत प्रभाव डालती है और जिनसे कम्प्यूटर में संग्रहित सामग्री या कॉपीराइट सम्बन्धी अधिकार का उल्लंघन होता है।
साइबर अपराध की प्रकृति (Nature of Cyber Crime)
वास्तव में देखा जाए तो साइबर अपराध अन्तर्देशीय स्वरूप का होता है क्योंकि इसका प्रभाव विश्व के विभिन्न देशों तक होता है। विभिन्न देशों के निहित हित ही साइबर विरोधी अन्तर्राष्ट्रीय विधायन के लिए बाधक सिद्ध हुए है। देशों के राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय हितों में टकराव के कारण इस सम्बन्ध में कोई सर्वमान्य कानून पारित नहीं हो सका है जिसके कारण साइबर अपराधों में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है।
“साइबर अपराध का स्वरूप ही कुछ ऐसा है कि इसमें अपराधकर्ता दूर रहकर भी अपने अपराध के लक्ष्य बिन्दु के सम्पर्क या सामने आए बिना अपने अपराध को क्रियान्वित कर सकात है जिसके कराण उसके पड़े जाने के अवसर नगण्य प्राय होते हैं, और यदि पकड़ा भी जाए तो इसे साक्ष्य के आधार पर साबित करना अत्यन्त कठिन होता है।
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राष्ट्रसंघ द्वारा आयोजित बारहवें अपराध निवारण एवं आपराधिक न्याय’ विषय पर ब्राजील के साल्वेडोर में 12 से 19 अप्रैल, 2010 के अधिवेशन में पूरी चर्चा का विषय कम्प्यूटर जनित अपराध के कारणों तथा इनके निवारण पर ही केन्द्रित था तथा इस हेतु क्या उपाय किये जाएँ इस पर सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किये लेकिन स्वदेशी हितों को ध्यान पर रखते हुए इस हेतु एक मानक अन्तर्राष्ट्रीय कानून पारित करने पर मतैक्य नहीं हो सका।
साइबर अपराध, अन्य अपराधों से इस अर्थ में भिन्न होता है कि इसमें किसी भी चरण में साइबर अन्तरिक्ष (cyber space) का प्रयोग किया गया होता है तथा यह कम्प्यूटर जनित या इन्टरनेट के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
साइबर अपराध में तीव्रगति से वृद्धि के कारण साइबर अपराधों के विभिन्न तरीकों का उल्लेख करने के पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि इन अपराधों में अन्य रूढ़िगत अपराधों की तुलना में शीघ्रता से वृद्धि के क्या प्रमुख कारण है तथा साइबर अपराधी सूचना प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग करने की ओर क्यों प्रवृत्त हो रहे हैं? कम्प्यूटर अपराधों की बहुकला में मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) कम्प्यूटर में थोड़ी सी जगह में वृहद डॉटा संग्रहीत रखने की विलक्षण क्षमता होने के कारण इसमें विविध सूचनाएँ एकत्रित कर संजोकर रखी जा सकती हैं जिसका किसी की समय आवश्यकतानुसार उपयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार आवश्यकता न रहने पर जानाकरी को सरलता से हटाया (Deleted) भी जा सकता है।
(2) सुरक्षा उपायों की अनदेखी करते हुए कम्प्यूटर में अनधिकृत अभिगमन (Unauthorized assess) द्वारा गोपनीय या अवांछित व्यक्तिगत जानकारी हासिल करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
(3) कम्प्यूटर एक जटिल आपरेटिंग सिस्टम (Operating System) से चलित होता है जिसमें हजारों कूट-संकेत (Codes) रहते हैं। साइबर अपराधी मानव मस्तिष्क की विस्मृति (Fallibility of human mind) का नाजायज फायदा उठाते हुए कम्प्यूटर सिस्टम में अवैध प्रवेशन द्वारा संचयित जानकारी चुरा लेते हैं ताकि उससे व्यक्ति को ब्लैकमेल किया जा सके या इसका नाजायज फायदा उठाया जा सके।
(4) कम्प्यूटर सिस्टम का एक मुख्य लक्षण यह है कि इसमें से सबूत को आसानी से नहीं किया जा सकता है। अतः आपराधिक लक्ष्य साध्य होते ही साइवर अपराधी सर्वप्रथम अपने विरुद्ध सबूतों को नए कर देता है ताकि वह अन्वेषण संस्थाओं की पकड़ के बाहर रहे और उसके विरुद्ध अभियोजन का कोई साक्ष्य उपलब्ध न रहे।
(5) कम्प्यूटर प्रयोक्ता (Computer User) द्वारा कम्प्यूटर में एकत्रित करके रखी गई जानकारियों को सुरक्षित रखने में तनिक भी असावधानी उसे घोर क्षति कारित कर सकती है। क्योंकि साइबर अपराधी कम्प्यूटर सिस्टम में से अनधिकृत अभिगमन (unauthorized access) द्वारा जानकारी चुराकर उसका दुरुपयोग कर सकता है।
साइबर अपराध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन (various types of cyber crime)
वायरस के अतिरिक्त अन्य साइबर अपराध है जो कम्प्यूटर सिस्टम, नेटवर्क या डाटा के प्रति कारित होते हैं जबकि कुछ में अपराध कारित करने के लिए कम्प्यूटर को साधन या माध्यम रूप में प्रयोग किया जाता है। अतः इस दृष्टि से साइबर अपराधों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है
1. ऐसे साइबर अपराध जिनमें कम्प्यूटर स्वयं ही अपराध का लक्ष्य होता है (Where computer itself is target of crime)
2. साइबर अपराध जिनमें कम्प्यूटर को साधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
1. अपराध जिनमें कम्प्यूटर स्वयं ही अपराध का लक्ष्य (निशाना Target) है- इस वर्ग में निम्नलिखित अपराधों का समावेश है 1. कम्प्यूटर सिस्टम या कम्प्यूटर नेटवर्क्स का विध्वंस या तोड़फोड़ 2. आपरेटिंग सिस्टम तथा प्रोग्रामों का विध्वस (Sabotage)
3. स्टोर किये गये डॉटा या सूचनाओं की चोरी
4. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर जैसे बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की चोरी
5. मार्केट या बाजार सम्बन्धी सूचनाओं एवं जानकारी को चोरी
6. कम्प्यूटर फाइल से अवैध अभिगमन (unauthorized access) द्वारा प्राप्त की गई वैयक्तिक जानकारी, लैंगिक झुकाव तथा प्राथमिकताएँ, वित्तीय डाटा, चिकित्सीय जानकारी आदि की चोरी करके सम्बन्धित व्यक्ति का भयादोहन (blackmail) करना, आदि।
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2. अपराध कारित करने हेतु कम्प्यूटर का साधन के रूप में प्रयोग-इस प्रकार के साइबर अपराधों का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है और सूचना प्रौद्योगिकी तथा कम्प्यूटर विज्ञान के विकास के फलस्वरूप अपराध कारित करने में कम्प्यूटर का साधन के रूप में प्रयोग साइबर अपराधियों के लिए सुविधाजनक माध्यम सिद्ध हुआ है क्योंकि इन्हें अपराध करन एके लिए न तो कहीं अन्यत्र जान की आवश्यकता होती है और उनके पहचान लिए जाने का कोई खतरा रहता है। सात ही वे सुदूर स्थानों से विश्व के किसी भी कोने में पीड़ितों को अपना लक्ष्य बना सकते हैं।
इस प्रकार के अपराधों में कम्प्यूटरों प्रोग्रामों में जोड़-तोड़ करके (manipulation) साइबर अपराध को क्रियान्वित करना आसान (सरल) बनाया जाता है। उदाहरणार्थ, आटोमेटिक टेलर मशीन (ATM) कार्ड तथा लेखाओं का कपटपूर्ण उपयोग तथा ई-बैंकिंग ई-वाणिज्य से सम्बन्धित घोटाले आदि। साइबर अश्लीलता (cyber pornography) साफ्टवेयर दस्युता | (Software piracy); ऑनलाइन जुआखोरी, कॉपीराइट या व्यापार चिह्न का दुरुपयोग आदि इस वर्ग में अन्तर्गत आने वाले अन्य अपराध हैं।
परंपरागत वर्गीकरण (Traditional Classification)
साइबर (Cyber) के अनुसार साइबर अपराधों के परंपरागत वर्गीकरण के अन्तर्गत दो प्रकार के अपराध हो सकते हैं (1) आर्थिक स्वरूप के साइबर अपराध (Cyber Crime of Economic Type) तथा (2) निजता के विरुद्ध साइबर अपराध (Cyber Crimes against Privacy) । प्रथम में किन्हीं संसाधनों को अपराध कृत्य द्वारा क्षति कारित करना, तथा दूसरे में व्यक्ति की निजता में अवैध तरीके से हस्तक्षेप शामिल है।
सामान्य वर्गीकरण (General Classification)
सामान्य वर्गीकरण निम्न है
1. स्पैम ईमेल- अनेक प्राकर के ईमेल आते हैं जिसमें ऐसे ईमाल भी होते हैं जो सिर्फ कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाते हैं। उन ईमेल से सरे कंप्यूटर में खराबी आ जाती हैं।
2. हैकिंग- किसी भी भी निजी जानकारी को हैक करना जैसे की उपयोगकर्ता नाम या पासवर्ड और फिर उसमें फेर बदल करना।
3. साइवरफिशिंग- किसी के पास स्पैम ईमेल भेजना ताकी वो अपनी निजी जानकारी दे और उस जानकारी से उसका नुकसान हो सके। यह इमेल आकर्षित होते हैं।
4. वायरस फैलाना- साइबर अपराधी कुछ ऐसे सॉफ्टवयर आपके कम्प्यूटर पर भेजते हैं, जिसमें वायरस छिपे हो सकते हैं, इनमें वायरस, वर्म, टार्जन हॉर्स, लॉजिक हॉर्स आदि वायरस शामिल हैं, यह आपके कंप्यूटर को काफी हानि पहुँचा सकते हैं।
5. सॉफ्टवयर पाइरेसी- सॉफ्टवेयर की नकल तैयार कर सस्ते दामों में बेचना भी साइबर क्राइम के अन्तर्गत आता है, इससे साफ्टवेयर कम्पनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है साथ ही साथ आपके कीमती उपकरण भी ठीक से काम नहीं करते हैं।
6. फर्जी बैंक कॉल- आपको जाली ईमेल, मैसेज या फोन कॉल प्राप्त हो जो आपकी बैंक जैसा लगे जिसमें आपसे पूछा जाये कि आपके एटीएम नंबर और पासवर्ड की आवश्यकता है बौर यदि आपके द्वारा यह जानकारी नहीं दी गयी तो आपको खाता बन्द कर दिया जायेगा या इस इलंक पर सूचना दें। याद रखे किसी भी बैंक द्वारा ऐसी जानकारी कभी भी इस तरह से नहीं। माँगी जाती है और भूलकर भी अपनी किसी भी इस प्रकार की जानकारी को इन्टनेट या फोनकॉल या मैसेज के माध्यम से नहीं बताये।
7. सोशल नेटवर्क साइटों पर अफवाह फैलाना- बहुत से लोग सोशल नेटवर्किंग साइटों पर रसामाजिक, वैचारिक, धार्मिक और राजनैतिक अफवाह फैलाने का काम करते हैं, लेकिन यूजर्स लेकिन इरादें समझ नहीं पाते हैं और जाने-अनजाने में ऐसे लिंक्स को शेयर करते रहते हैं, लेकिन यह भी साइबर अपराध और साइबर आतंकवाद की श्रेणी में आता है।
8. साइबर बुलिंग- फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग पर अशोभनीय कमेंट करना, इंटरनेट पर धमकियाँ देना किसी का इस स्तर तक मजाक बनाना कि तंग हो जाये, इंटरनेट पर दूसरों के सामने शर्मिंदा करना, इसे साइबर बुलिंग कहते हैं। अक्सर बच्चे इसका शिकार होते हैं। इससे इनके सेहत पर भी असर पड़ता है।
साइबर अपराध के निवारण उपायों का वर्णन( preventive measures for cyber crime)
साइबर अपराधों के निवारण तथा नियन्त्रण हेतु किये जा रहे अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के परिप्रेक्ष्य में सरसरी तौर पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट होता है कि विश्व के प्रायः सभी देश इन अपराधों में तीव्रगति से ले रही बढ़ोत्तरी को सामाजिक, आर्थिक, एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों के लिए एक गम्भीर खतरा मानते हैं और इनसे प्रभावी ढंग से निपटना विधि प्रवर्तकों के समक्ष एक गम्भीर चुनौती है।
भारतीय साइबर अपराध विधि के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 (2009 का अधिनियम संख्या 10) द्वारा सन् 2000 के मूल अधिनियम में व्यापक संशोधन किये गए जो इस कानून की कमियों तथा दोषों का निवारण करने में कारगर सिद्ध हुए हैं। इसी प्रकार हाल ही में अप्रैल 2011 में इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्मित नियमों को भी संशोधित किया गया है।
परन्तु इतने सब प्रयासों के बावजूद कम्प्यूटरों से अपराध कम होने के बजाय निरंतर बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि इनकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति के कारण विभिन्न देशों की अधिकारिता सम्बन्धी समस्या (Jurisdictional Problems) के कारण साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसना कठिन हो रहा है। साथ ही ये अपराध साइबर स्पेस में घटित होने के कारण अपराधियों की पहचान एक गम्भीर समस्या है। केवल इतना ही अनेक प्रकरणों में तो
उत्पीड़ित व्यक्ति (victim) को भी काफी समय बाद पता चलता है कि वह किसी साइबर अपराध का शिकार हुआ है। अतः अपराध की रिपोर्टिंग में विलम्ब के कारण अपराधी को साक्ष्य मिटाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है और वे पकड़े जाने या दोष सिद्ध होने से बच निकलते हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 से 2014 के मध्य साइबर अपराधों में 300 प्रतिशत में अधिक वृद्धि हुई है। केन्द्रीय सरकार ने दिसम्बर 2015 की एक जनहित याचिका के उत्तर में उच्चतम न्यायालय को सूचित किया था कि वह शीघ्र ही एक राष्ट्रीय साइबर क्राइम सहयोग केन्द्र (National Cyber Crime Coordination Centre) की स्थापना करने जा रही है जो केवल साइबर अपराध और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर विचार करेगा और अन्य दाण्डिक संस्थाओं से तालमेल रखते हुए इन अपराधों पर नियन्त्रण रखेगा।
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